एक बार खिलता फूल कहूंगा
एक बार जिगर में अंगारा
एक बार गहराती रात कहूंगा
एक बार झिलमिल तारा
एक बार जागा सपना कहूंगा
एक बार हाथ में लकीर
एक बार धूनी रमाता कहूंगा
एक बार गाता फकीर
एक बार दर दर भटका कहूंगा
एक बार मिला कमंडल
एक बार ये है चिमटा कहूंगा
एक बार अलख निरंजन
एक बार तुमसे प्रेम कहूंगा
एक बार टपका आंसू
एक बार पहाड़ काटूंगा कहूंगा
एक बार नदी में झांकूं
पेंटिंग ः मार्क शागाल
17 comments:
बस बार बार बहुत सुंदर कहूंगा
एक बार कहूँगा अद्भुत-अद्भुत
एक बार आदाब कहूँगा
एक बार तस्लीम कहूँगा
एक बार वाह वाह कहूँगा
एक बार कहूँगा...
ऐसी कविता मत लिख यार.....
पढ़ लेने के बाद किसी काम में मन नहीं लगता...
क्या बात है !! बार बार पढने जैसा... बार बार पढ़ा ....
एक बार तुमसे प्रेम कहूंगा
एक बार टपका आंसू
अदभुत .बहुत सुंदर ..एक बार नहीं बार -बार कहूँगी कि आप यूँ ही लिखते रहे
कविता और पेंटिंग में तारतम्य कमाल का बैठा लेते हैं आप। खूब!!!
छाया मत छूना मन...
दुख होगा दूना मन ..
फिर भी..
बहुत सुंदर अभियक्ति..
एक बार तुमसे प्रेम कहूंगा
एक बार टपका आंसू
ye bhi achchhii baat..
bahut sundar rachana badhai
बहुत सही!! बार बार सुन्दर!!
बहुत बहुत सुंदर ..
यूँ ही लिखते रहे
yar ravindra bhai bar-bar kahoge to bhi kam pad jayega.bahut lambi feharist ho jayegi aur ho sakata hai sunane vala bhi bhag jayega. phir prem koun karega? bina kahe kaho prem. douda chala ayega.
chumkar apake hathon ko vah bhi kuchh kah nahi payega.dono ke bich ki hava me prem hi prem rah jayega.
chalne do.
Achchi rachna. Kone ki hariyali barkarar rakhen.
guptasandhya.blogspot.com
bahut sunder rachana
regards
रविन्द्र जी बहुत ही सुंदर रचना बहुत बहुत बधाई
बहूत ब्लॉग पर बहूत अच्छी कवितायें पढने को मिली और पेंटिंग्स भी जबरदस्त हैं
मैं आप सभी के प्रति गहरा आभार प्रकट करता हूं।
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